
पागल सी एक लड़की है
हर पल वो मुझको तकती है
आंख में उसकी मस्ती है
वो बात-बात पर हंसती है
हर रोज वो रूप बदलती है
हर रूप में अच्छी लगती है
इस दिल में आग भड़काती है
जब मेरी तरफ वो बढ़ती है
दीदार को आंख तरस्ती है
फुर्सत में आंख बरसती है
वो जब भी मुझसे मिलती है
ये जालिम दुनिया जलती है
प्यार वो मुझसे करती है
इजहार से लेकिन डरती है
पागल सी एक लड़की है...
जानी पहचानी सी लगी कुछ पंक्तियाँ, पर अच्छी लगीं कुछ अपने करीब लगीं
ReplyDeleteआपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteअच्छी कविता है। बिल्कुल अपनी लगने वाली।
ReplyDeletenye varsh ki shubhkamnayen..
ReplyDeleteकुछ अपनी सी लगी ये पक्तियाँ। बहुत खूब।
ReplyDeletebahut sunder panktiyan
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