Tuesday, March 24, 2009

"मुझे चांद कहो या जान कहो"


मुझे चांद कहो या जान कहो,
मुझे अपने दिल का महमान कहो,

मुझे देखों हर लम्हा यूं ही,
मुझे तुम अपनी पहचान कहो,

मुझे तुम अपना मन कहो,
हर हाल में तुम मुझ को ही सोचो,

मुझ से दिल का हर अरमान कहो,
हर लम्हा तुम को ही सोचूं मैं,

मुझे प्यार की तुम अपनी शान कहो,
मेरे दिल की धरती सिर्फ तुम्हारी है,

उसे जमीन कहो आसमान कहो,
तुम्हारी दुनिया में खोया रहता हूं,

मुझे मस्त कहो अनजान कहो,
रखूं दूर हर सहर को तुमसे,

मुझे दोस्त कहो निगेबान कहो,
मुझे चांद कहो या जान कहो...

4 comments:

अनिल कान्त said...

बहुत ही उम्दा ख़यालात है आपके

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

नीरज गोस्वामी said...

बहुत अच्छी रचना है आपकी लेकिन स्पेस की समस्या से आगे पीछे की लाईने गडमड हो गयीं हैं जिससे पढने में दिक्कत हो रही है याने की दो लाइनों के बीच गेप सही नहीं है जैसे:
मुझ से दिल का हर अरमान कहो,
हर लम्हा तुम को ही सोचूं मैं,

मुझे प्यार की तुम अपनी शान कहो,
मेरे दिल की धरती सिर्फ तुम्हारी है,

उसे जमीन कहो आसमान कहो,
तुम्हारी दुनिया में खोया रहता हूं,

इसे यूँ टाईप करना चाहिए था...

मुझ से दिल का हर अरमान कहो,

हर लम्हा तुम को ही सोचूं मैं,
मुझे प्यार की तुम अपनी शान कहो,

मेरे दिल की धरती सिर्फ तुम्हारी है,
उसे जमीन कहो आसमान कहो,

तुम्हारी दुनिया में खोया रहता हूं,.....

उमीद है आपमेरा आशय समझ गए होंगे...
नीरज

mehek said...

very sweet poem.

दिगम्बर नासवा said...

मुझे चांद कहो या जान कहो,
मुझे अपने दिल का महमान कहो,

बहुत सुन्दर......क्या क्या चाता है इंसान महबूब से. सुन्दर रचना