
ख्वाबों का एक जजीरा हो,
जूगनुओं का जहां बसेरा हो,
कोई वहां तक ना जा सके,
आना-जाना सिर्फ तेरा-मेरा हो,
जुल्फों से तेरी मैं खेला करूं,
तेरी पलकों का मुझ पर पहरा हो,
चांद-सितारें देखा करें,
उस नगरी जब भी हमारा फेरा हो,
ना खत्म होने वाली हो बातें,
ऐसी रात का ना कभी सवेरा हो।
जूगनुओं का जहां बसेरा हो,
कोई वहां तक ना जा सके,
आना-जाना सिर्फ तेरा-मेरा हो,
जुल्फों से तेरी मैं खेला करूं,
तेरी पलकों का मुझ पर पहरा हो,
चांद-सितारें देखा करें,
उस नगरी जब भी हमारा फेरा हो,
ना खत्म होने वाली हो बातें,
ऐसी रात का ना कभी सवेरा हो।
सुन्दर भावप्रद रचना.. मगर सवेरा तो होने दीजिये..दूसरी कहानी और दूसरे फ़ेरे के लिये जरूरी है दोस्त :)
ReplyDeletewaah aapke khwabon ka ghar to sach bahut khoobsoorat hai.
ReplyDeleteना खत्म होने वाली हो बातें,
ReplyDeleteऐसी रात का ना कभी सवेरा हो।
लाजवाब, खूबसूरत नज्ज़
ना खत्म होने वाली हो बातें,
ReplyDeleteऐसी रात का ना कभी सवेरा हो।
waah bahut khubsurat khwab .
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमन ख्वाबों का एक जखीरा,
ReplyDeleteचाँद-सितारे दिखला देता।
नख-सिख की सारी बातों का,
वर्णन करना सिखला देता।।