
चाहों जो मेरी खताओं की सजा दो मुझको,
पर खता क्या है जरा इतना बता दो मुझको,
मैंने चाहा था तुम्हें अपनी जान से बढ़कर,
इन वफाओं के सिले ऐसी वफा दो मुझको,
भुलना तुझको मेरे लिए ना मुमकिन है,
जो हो सके तो सनम तुम ही भुला दो मुझको,
अब अगर सोच ही लिया है दूर होना है मुझसे,
मैं मर ही जाऊं कोई ऐसी सजा दो मुझको।
पर खता क्या है जरा इतना बता दो मुझको,
मैंने चाहा था तुम्हें अपनी जान से बढ़कर,
इन वफाओं के सिले ऐसी वफा दो मुझको,
भुलना तुझको मेरे लिए ना मुमकिन है,
जो हो सके तो सनम तुम ही भुला दो मुझको,
अब अगर सोच ही लिया है दूर होना है मुझसे,
मैं मर ही जाऊं कोई ऐसी सजा दो मुझको।
बहुत खूब कहा है आपने, सजा मिलने से पहले खता जानने का अधिकार तो होना ही चाहिए।
ReplyDelete----------
TSALIIM.
-SBA-
bahut sunder
ReplyDeleteMohabbat hai...mohabbat hai
ReplyDelete