Friday, May 8, 2009

"फिर किसी याद ने रातभर है जगाया मुझको"



फिर किसी याद ने रातभर है जगाया मुझको,
क्या सजा दी है मोहब्बत ने खुदाया मुझको,

दिन को आराम है ना रात को है चैन कभी,
जाने किस खाक से कुदरत ने बनाया मुझको,


दुख तो ये है कि जमाने में मिले गैर सभी,
जो मिला है वो मिला पराया मुझको,


जब कोई भी ना रहा कांधा मेरे रोने को,
घर की दीवारों ने सीने से लगाया मुझको,


बेवफा जिंदगी ने जब छोड़ दिया है तनहा,
मौत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझको,

वो दीया हूं जो मोहब्बत ने जलाया था कभी,
गम की आंधी ने सुबह और शाम बुझाया मुझको,

कैसे भुलूंगा तेरे साथ गुजारे लम्हें,
याद आता रहा जुल्फों का ही साया मुझको।

6 comments:

  1. किसी की याद की इससे सुन्दर अभ्वय्क्ति और क्या हो सकती है..काश कोई किसी से कभी ना बिछडे...!ये जुदाई तो असहनीय होती है...

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  2. सुन्दर भाव अभिव्यक्ति है.. सभी शेर अच्छे बन पडे हैं

    उधर से नजर हटा और कभी मुड के देख
    क्या खबर कोई और भी हो तकता तुझको

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  3. वाह!! जुदाई के दर्द को क्या खूब बाँधा है शब्दों में.........बहुत सुंदर रचना.......अच्छी लगी।

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  4. जब कोई भी ना रहा कांधा मेरे रोने को,
    घर की दीवारों ने सीने से लगाया मुझको,

    BAHUT SUNDAR

    VENUS KESARI

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  5. वाह जनाब.............जुदाई के रंग में doobi लाजवाब prastuti

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  6. जनाब आदाब अर्ज़ है... आप की प्रेम कहानी कहां तक पहुंची थोडा अवगत करवाओ...

    हितैशी..
    नवीन

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