Monday, April 6, 2009

"मुझे खोने से डरती थी..."


मेरी आंखों पे मरता था,
मेरी बातों पे हंसता था,

ना जाने शख्स था कैसा,
मुझे खोने से डरता था,

मुझे जब भी वो मिलता था,
यही हर बार कहता था,

सुनो!!

अगर मैं भूल जाऊं तो?
अगर मैं रूठ जाऊं तो?

कभी वापिस ना आऊं तो?
भूला पाओगी ये सब कुछ?

यूं ही हंसती रहोगी क्या?
यूं ही सजती रहोगी क्या?

यही बातें हैं अब उसकी,
यही यादें हैं अब उसकी,

मुझे बस याद है इतना,
मुझे वो प्यार करती थी,

मुझे खोने से डरती थी।

5 comments:

उम्मीद said...

maan ki baat kah di aap ne

gargi

Udan Tashtari said...

लिखते रहें, शुभकामनाऐं.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत मज़ा आया....

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ...

Shikha Deepak said...

बहुत सुंदर।