Saturday, April 25, 2009

"फिर भी ये मोहब्बत क्यूं है"


तेरी तस्वीर मेरी आंखों में बसी क्यूं है,
जहां देखों बस उधर तु ही क्यूं है,

तेरी यदों से वाबस्ता मेरी तकद्दीर है,
लेकिन तुझे ना पा कर मेरी तकद्दीर रूठी क्यूं है,


मुझ को है खबर आसान नहीं तुझे हासिल करना,
फिर भी ये इंतजार ये बेकरारी क्यूं है,

बरसों गुजर गए मेरे तन्हाइयों में लेकिन,
मेरी बाहों को आज भी तेरा इंतजार क्यूं है,

तेरी चाहत की कसम खून के आंसू रोया हूं,
अब नहीं है कुछ बाकी फिर ये जान बाकी क्यूं है,

खत्म हुआ मेरा ये अफसाना एक बात बताऊं,
अंजाम था मालूम मुझको फिर भी ये मोहब्बत क्यूं है।

2 comments:

अनिल कान्त said...

yahi to mohabbat hai dost ...sab kuchh jaankar bhi hum mohabbat kiye rahte hain ....ishq par jalim zor nahi

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Lokendra said...

अंजाम था मालूम मुझको फिर भी ये मोहब्बत क्यूं है...

क्या खूब लिखा है आपने...
ग़ालिब की इस चर्चित लाइनों पर गौर फरमाइए...
"इश्क वो आग है
जो लगाये न लगे
जो बुझाये न बुझे.."