Thursday, February 12, 2009

"जज्बातों को मेरे कोई ढूंढ के लाओं जरा"



जज्बातों को मेरे कोई ढूंढ के लाओं जरा,


भूल गया हूं मुस्कुराना कोई मुझे हंसाओं जरा,


छूने से भी किसी के अहसास नहीं होता,


कोई मेरे दिल की धड़कनों को हाथ लगाओ जरा।

4 comments:

Anonymous said...

कभी कभी हालात ऐसे हो जाते हैं...सच में आपने हकीकत बयान की है...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उर-मन्दिर से बाहर निकालो,
वो जज्बातों का घर है।
पहरेदार हटा लो सारे,
कुण्ठाओं का क्या डर है।।

Vinay said...

कुछ ख़ास पोस्ट चाहूँगा, 14 फ़रवरी पर

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गुलाबी कोंपलें

Unknown said...

sale aj tak ke posto me se aj ke post ne to jaan le li

bhaut acha tha