Monday, March 16, 2009

"धीरे से सरकती है रात उस के आंचल की तरह"


धीरे से सरकती है रात उस के आंचल की तरह,
उस का चेहरा नजर आता है झील में कमल की तरह,

मुद्दतों बाद उसको देखा तो जिस्म-ओ-जान को यूं लगा,
प्यासी जमीन पे जैसे कोई बरस गया बादल की तरह,


रोज कहता है सीने पे सिर रखकर रातभर सुलाऊंगा,
सरे-शाम ही मुझे आज फिर सुला गया वो कल की तरह,

उस का शरमाना भी मुझे मात देता है,
उसकी तो हर अदा है किसी खामोश कातिल की तरह,

धीरे से सरकती है रात उसके आंचल की तरह...

3 comments:

roushan said...

बहुत खूब !

अनिल कान्त said...

raat aur raat kii baat

Anonymous said...

उस का शरमाना भी मुझे मात देता है,
उसकी तो हर अदा है किसी खामोश कातिल की तरह,

waah behad khubsurat