Friday, March 27, 2009

"आवारा बादल हूं मैं..."


आवारा हवाओं में उड़ता एक आवारा बादल हूं मैं,
खुद चैन हूं अपने दिल का और खुद ही दिल की हलचल हूं मैं,

मैंने ही हंसाया है दिल को, जब-जब था उदासी का आलम,
रोया हूं लिपटकर खुद से, एक भीगा सा आंचल हूं मैं,

कल, आज और कल को यूं मैंने सीने से लगाकर रखा है,
खुद आने वाला वक्त और खुद गुजरा हुआ हर पल हूं मैं,

आ मुझको सजा ले होठों पर नगमा हूं तेरी हर धड़कन का,
आ फिर से बसा ले आंखों में तेरी आंखों का काजल हूं मैं,

तु लाख सीतम ढाता है और शिकवा भी नहीं है क्यों मुझको,
हां तेरा हूं दिवाना, और हां तेरे लिये पागल हूं मैं,

आया हूं जहां से जाना है फिर लौट वहीं एक दिन,
बस नाम का आवारा हूं और बस नाम का एक बादल हूं मैं।

2 comments:

mehek said...

कल, आज और कल को यूं मैंने सीने से लगाकर रखा है,
खुद आने वाला वक्त और खुद गुजरा हुआ हर पल हूं मैं,
bahut sunder

दिगम्बर नासवा said...

आया हूँ जहाँ फिर लौट के जाना है...........
खूबसूरत है रचना