आज फिर से मन कुछ भारी-भारी लग रहा है। कल उससे बात हुई थी तो कुछ मन हल्का हो गया था। पर आज फिर से ऐसा लग रहा है कि जैसे वो फिर से इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो गई है। और उससे contact करने का मेरे पास कोई साधन नहीं है। हमेशा ऐसा ही लगता है जब वो फोन रखती है तो लगता है कि शायद आज ये उसका आखिरी फोन था। अब वो कभी फोन नहीं करेगी। और मैं फिर से अनिश्चिता के अंधेरे में खो जाता हूं। उस समय मुझे वो पूराने दिन याद आते हैं जब हम एक दूसरे के contact में रहते थे। इस बात को अभी समय ही कितना हुआ है। लगभग 2 महीने। इन 2 महीनों में मेरी सारी जिन्दगी बदल गई। हमारा एक-दूसरे से सम्पर्क का माध्यम सिर्फ मोबाइल ही तो था। जबसे उसके घरवालों ने उसका मोबाइल लिया है। तब से ऐसा महसूस होता है कि किसी ने मेरी सांसो को मुझसे छीन लिया है। कभी-कभी मन करता है कि भाग कर उसके पास पहुंच जांऊ। पर ये दो राज्यों की दूरी और समाज का भय और उससे भी ज्यादा की कहीं उसी ने मुझसे मिलने से मना कर दिया तो मैं बिल्कुल टूट जाऊंगा। क्योंकि वो देहरादून में है और मैं दिल्ली में। उससे मुश्किल से मैं सिर्फ चार बार ही मिला हूं। लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि मैं उसको कितने जन्मों से जनता हूं।
सच में उससे दूर होना मेरे लिए एक बहुत ही दु:खद अनुभव है। उसके बिना कितने समय तक जिंदा रहूंगा मुझे नहीं पता 'जान' आई लव यू। तुम अपना ख्याल रखना। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं। मुझ पर हमेशा विश्वास रखना।
Tuesday, December 2, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
वाह!!लगे रहो।
Post a Comment