Saturday, March 14, 2009

"मुझे बाहों में बिखर जाने दो"


मुझे बाहों में बिखर जाने दो,
अपनी मुश्कबार सांसों से महक जाने दो,

दिल मचलता है और सांसे रूकती हैं,
अब तो सीनें में आज मुझे उतर जाने दो,


शोख नजरों को शर्म आती है,
थरथराते हुए लबों को चैन पाने दो,

रात तनहा है और सर्द मौसम है,
शोला-ए-अहसास को अब और भड़क जाने दो,


बहके हैं हम जो फिजा बहकी है,
दिल को दिल, रूह को रूह में समा जाने दो,

अभी और भी अरमान दिल में बाकी हैं,
यूं ही बाहों में इस रात को कट जाने दो,

मुझे बाहों में बिखर जाने दो,
अपनी मुश्कबार सांसों से महक जाने दो...

3 comments:

Anonymous said...

बहके हैं हम जो फिजा बहकी है,
दिल को दिल, रूह को रूह में समा जाने दो,

अभी और भी अरमान दिल में बाकी हैं,
यूं ही बाहों में इस रात को कट जाने दो,

bahut sunder ehsas, hai kavita ka,badhai.

रंजना said...

बहुत ही सुन्दर,मनमोहक और प्रभावशाली रूमानी रचना है....वाह !

दिगम्बर नासवा said...

बहुत umda gazal, हर sher lajawaab. ये दोनों तो ख़ास कर.........
दिल मचलता है और सांसे रूकती हैं,
अब तो सीनें में आज मुझे उतर जाने दो,
अभी और भी अरमान दिल में बाकी हैं,
यूं ही बाहों में इस रात को कट जाने दो,