Saturday, January 10, 2009

"'प्यार', 'ईश्क', 'मोहब्बत'"

'प्यार', 'ईश्क', 'मोहब्बत' ये ढाई अक्षर का शब्द जिसको माने तो सब कुछ है और न माने तो कुछ भी नहीं। कहने वालो ने कहा है कि प्रेम एक रोग है एक बार जिसे लग जाए तो उसे अपनी सुध-बुध नहीं रहती। फिर उसके लिए दुनिया में इससे कीमती और मूल्यवान कोई वस्तु नहीं। उसके लिए सोना-चांदी, हीरे-मोती, लाख-करोड़ का कोई मूल्य नहीं ये सब उसके लिए मिट्टी के समान है। प्रेम एक ऐसी अवस्था है जिसमें पहुंच कर व्यक्ति को सिवाए अपने प्रेमी के और कुछ ध्यान नहीं रहता। हर वक्त बस उसी का चिंतन रहता है जिससे व्यक्ति प्यार करता है। उस समय व्यक्ति का केवल एक ही उद्देश्य रहता है कि किसी तरह भी अपने साथी को ये विश्वास दिलाए कि वो उससे कितना प्यार और विश्वास करता है। हर पल बस उसी के ध्यान में खोया रहता है और उसको अपने ध्यान में रखकर नई नई कल्पनाएं करता है, उसके साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहता है। उसके सुख-दुख का हिस्सेदार बनना चाहता है। उसके गमों को बांटना चाहता है। और यहां तक कि अपनी सारी खुशियां उस पर न्यौछावर करके उसे खुशी देना चाहता है। बदले में अपने साथी से वो केवल यही चाहता है कि वो भी उस पर उतना ही विश्वास करे जितना की वो उस पर करता है। परन्तु जब उसे इस बात का अहसास होता है कि जिस व्यक्ति को वो इतना प्यार और विश्वास करता है वो ही उससे झुठ बोलने लगे तो उस व्यक्ति के दिल पर क्या बितती है उसका सारा विश्वास कुछ ही पलों में कांच के टूकड़ों की तरह टूट कर बिखर जाता है। उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है। आंखों के आगे अंधकार छा जाता है। सपनों का वो महल जो उसने एक-एक ईंट जोड़कर इतने वर्षों में बनाया था अचानक उसे एक खण्डहर दिखने लगता है। उसे समझ नहीं आता कि अचानक उसके साथ ये क्या हो गया। कुछ ही समय पहले ये सब जो उसे खुशियां दिख रही थी वो दर्द कैसे बन गया। उसका मन विचलित हो जाता है बार-बार मन में प्रश्नों के ज्वार खडे होते हैं वो यही सोचता है कि ऐसा उसी के साथ क्यों हुआ जबकि उसके मन में कोई कपट नहीं था। वो तो उससे सच्चा प्यार करता था। क्या उसको मेरे प्यार पर विश्वास नहीं था? क्या उसको मुझ पर विश्वास नहीं था? क्या कहीं उसी के प्यार में तो कोई कमी नहीं रह गई? क्या शायद मैं ही उसके लायक नहीं था? हां शायद यही की मैं ही उसके लायक नहीं था। शायद उसकी मंजिल कोई और है। अंत में अगर वो व्यक्ति सच्चा है उसका प्यार सच्चा है तो वो अपने को यही सांत्वना देता है कि हां शायद मैं ही उसके लायक नहीं था। परन्तु उस प्यार का क्या जो दोनो ने मिलकर किया था। बस यही प्रश्न उसकी जिन्दगी का यक्ष प्रश्न बनकर रह जाता है........


काश ये जिंदगी हंसीन होती,
खुद के चाहने से हर दुआ कुबूल होती है,
कहने को तो सब अपने हैं पर,
काश कोई ऐसा होता जिसे मेरे दर्द से तकलीफ होती।

7 comments:

ashwini said...

दिल का दर्द...sahi hai bhai

ashwini said...

दिल का दर्द...sahi hai bhai

More Shayari

Anonymous said...

यशपाल ने कहा है : अच्छे समझे जाने या प्यार पाने के विश्वास से मस्तिष्क में एक सरूर छा जाता है.

दिगम्बर नासवा said...

काश कोई ऐसा होता जिसे मेरे दर्द से तकलीफ होती।

इस लाइन में दुनिया बार का दर्द समेट दिया है आपने

anuradha srivastav said...

प्यार की विफलता को सकारात्मक रूप से लीजिये।

Anonymous said...

बहुत खूब,
सच और दिल से लिखने के लिए आभार.
रजनीश के झा

Anonymous said...

nice.....क्या लिखा है आपने.........