दिल-ए-नादान अजब जुस्तजू में क्यूँ है
तुझसे शौक-ए-गुफ्तगु में क्यूँ है
मैंने चाहा है बहुत तुझ को
तु मेरी हर एक आरजू में है
तु मेरे साथ है तो लगता है ऐसे
एक उजाला सा मेरी रूह में है
जुदा खुद से करूं तो कैसे करूं
तुझसे शौक-ए-गुफ्तगु में क्यूँ है
मैंने चाहा है बहुत तुझ को
तु मेरी हर एक आरजू में है
तु मेरे साथ है तो लगता है ऐसे
एक उजाला सा मेरी रूह में है
जुदा खुद से करूं तो कैसे करूं
तेरी चाहत तो गर्दिश-ए-लहू में है।
1 comment:
जुदा खुद से करूं तो कैसे करूं
तेरी चाहत तो गर्दिश-ए-लहू में है।
बहुत खूब...
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