मेरा सावन भी तुम हो, मेरी प्यास भी तुम हो,
सहरा की बाहों में छुपी आस भी तुम हो,
तुम यूं तो बहुत दूर, बहुत दूर हो मुझसे,
अहसास ये होता है, मेरे पास भी तुम हो,
हर जख्म के आगोश में है दर्द तुम्हारा,
हर दर्द में तसकीन का अहसास भी तुम हो,
खो जाओं तो वीरान सी हो जाती हैं राहें,
मिल जाओं तो फिर जीने का अहसास भी तुम हो,
लिखता हूं तो तुम ही उतरते हो कलम से,
सहरा की बाहों में छुपी आस भी तुम हो,
तुम यूं तो बहुत दूर, बहुत दूर हो मुझसे,
अहसास ये होता है, मेरे पास भी तुम हो,
हर जख्म के आगोश में है दर्द तुम्हारा,
हर दर्द में तसकीन का अहसास भी तुम हो,
खो जाओं तो वीरान सी हो जाती हैं राहें,
मिल जाओं तो फिर जीने का अहसास भी तुम हो,
लिखता हूं तो तुम ही उतरते हो कलम से,
पढ़ता हूं तो लफ्ज भी तुम, आवाज भी तुम हो...!
3 comments:
लिखता हूं तो तुम ही उतरते हो कलम से,
पढ़ता हूं तो लफ्ज भी तुम, आवाज भी तुम हो..
बहुत खूब लिखा है.............
पूरी ग़ज़ल में कोई रूहानी पन है
खो जाओं तो वीरान सी हो जाती हैं राहें,
मिल जाओं तो फिर जीने का अहसास भी तुम हो,
--बहुत उम्दा!! वाह!
हर जख्म के आगोश में है दर्द तुम्हारा,
हर दर्द में तसकीन का अहसास भी तुम हो,
खो जाओं तो वीरान सी हो जाती हैं राहें,
मिल जाओं तो फिर जीने का अहसास भी तुम हो,
लिखता हूं तो तुम ही उतरते हो कलम से,
पढ़ता हूं तो लफ्ज भी तुम, आवाज भी तुम हो...!
जितनी तारीफ की जाये कम है...
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